तुलसीदास का जीवन परिचय, तुलसीदास का जीवन एक महत्वपूर्ण हिंदी साहित्यकार की जीवनी के रूप में माना जाता है। वह एक प्रमुख भक्ति काव्यकार हुए हैं और उनकी रचनाएँ आज भी हमारे समय में बड़ी मांग में हैं। तुलसीदास का जन्म 16वीं सदी में हुआ था और उनका योगदान हिंदी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण रहा है।
तुलसीदास का जीवन परिचय जीवन की प्रारंभिक कथा
तुलसीदास का जन्म 1568 में उत्तर प्रदेश के प्रयाग जिले के राजपुर गाँव में हुआ था। इनके बचपन का नाम रामबोला था। क्यूंकि इन्होने जन्म के समय ही राम शब्द बोला था और रोये नहीं थे इस लिए इनको इसी नाम से बुलाया जाने लगा। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी देवी था। इनका बचपन संघर्षमय रहा।
जन्म के 2 दिनों के बाद ही इनकी माँ का स्वर्गवास हो गया। उनके पिता आटे विक्रेता थे और उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। कुछ समय बाद पिता ने इन्हें एक महिला के हवाले करके संन्यासी होकर संसार से मुक्त होने की कोशिश की। उनका जन्म वर्ष परंपरागत तरीके से मनाया जाता है, उनका विवाह बदरिया के दीनबंधु पाठक की पुत्री रत्नावली से हुआ। लेकिन वह कई वर्षों तक संतानहीन रहे थे।
शिक्षा और साहित्यिक अभियान
तुलसीदास की प्रारंभिक शिक्षा उनके माता-पिता से हुई थी, लेकिन वे जल्द ही शिक्षा की ओर अपने कदम बढ़ा दिए। वे काशी (वराणसी) गए और वहां संस्कृत और हिंदी के विद्वान बनने के लिए प्रयास करने लगे। उनकी शिक्षा में उन्हें रामायण, पिंगलशास्त्र और संगीत की शिक्षा मिली। उनके गुरु नृसिंह चौधरी और हरिहरानंद थे। उन्होंने अपने जीवन के बड़े हिस्से को साहित्य में समर्पित किया और इसके बाद वे तुलसीदास के रूप में मशहूर हो गए।
तुलसीदास जी का विवाह
इनका विवाह बदरिया निवासी दीनबंधु पाठक की पुत्री रत्नावली से हुआ। इन्हे एक पुत्र भी हुआ जिसका नाम तारापति या तारक था जो कुछ समय बाद ही मर गया। रत्नावली के पीहर चले जाने पर ये रात में ही गंगा को तैरकर पार करके बदरिया जा पहुंचे। तब रत्नावली ने लज्जित होकर इन्हे धिक्कारा। उन्ही वचनों को सुनकर इनके मन में वैराग्य के अंकुर फुट गए और 36 वर्ष की अवस्था में शुक्रक्षेत्र सोरों को सदा के लिए त्यागकर चले गए।
भगवान श्री राम जी से भेंट
कुछ काल राजपुर रहने के बाद वे पुनः काशी चले गए और वहाँ की जनता को राम-कथा सुनाने लगे। कथा के दौरान उन्हें एक दिन मनुष्य के वेश में एक प्रेत मिला जिसने उन्हें हनुमान जी का पता बतलाया। हनुमान जी से मिलकर तुलसीदास ने उनसे श्री रघुनाथ जी का दर्शन करने की प्रार्थना की। हनुमान जी ने कहा “ तुम्हे चित्रकूट में रघुनाथ जी दर्शन होंगे ” इस पर तुलसीदास जी चित्रकूट की और चल पड़े। चित्रकूट में इन्हे राम दर्शन हुए और इन्होने रामायण लिखने का संकल्प लिया। इन्होने रामायण को अपनी भाषा अवधी में लिखा और इसे रामचरितमानस कहा।
तुलसीदास की प्रमुख रचनाएँ
तुलसीदास की प्रमुख रचनाएँ उनकी भक्ति काव्य के क्षेत्र में हैं। उनकी सबसे प्रमुख रचना “रामचरितमानस” है, जिसे वे रामायण के हिंदी अनुभाषण के रूप में लिखे थे। यह ग्रंथ हिंदी भाषा में भगवान राम के जीवन को बड़े ही सुंदर और भक्ति भाव से वर्णित करता है। “रामचरितमानस” भारतीय साहित्य का महत्वपूर्ण हिंदी काव्य काव्य ग्रंथ है और आज भी यह कई लोगों के द्वारा पठन और अध्ययन किया जाता है।
तुलसीदास की अन्य महत्वपूर्ण रचनाएँ इस प्रकार हैं
विनयपत्रिका : इस ग्रंथ में तुलसीदास ने शिक्षक और शिष्य के बीच संवाद के माध्यम से नैतिक और धार्मिक सीख दिए हैं। और अपनी मनोकामनाओं, शरणागति, प्रार्थना, स्तुति, आत्मसमर्पण, चरणकमल सेवा, भक्ति, प्रेम, विनम्रता, वैराग्य, ज्ञान, करुणा, क्षमा, संतोष, सहनशीलता, सत्य, अहिंसा, सेवा, समरसता, संगति, साधना आदि के बारे में भी बात की है
हनुमानचालीसा : यह छंदों में लिखा गया है और हनुमान जी की महिमा को गाने और प्रशंसा करने का एक बहुत ही प्रसिद्ध माध्यम है।
कवितावली : इसमें तुलसीदास ने अपनी कविताओं का संग्रह किया है, जो भगवान राम, सीता, और अन्य भक्ति संबंधी विषयों पर हैं।
दोहावली : यह एक संकलन है, जिसमें 573 दोहे हैं। इनमें से कुछ दोहे रामचरितमानस में प्रयुक्त हुए हैं।
गीतावली : यह एक प्रसिद्ध काव्य है, जिसमें 328 पद हैं।
बरवै रामायण : यह 12 प्रकरणों में 279 पदों का काव्य है, जिसमें मुख्यत: सीता-हरण की कहानी है।
पार्वती मंगल : यह 216 पदों का काव्य है, जिसमें पार्वती-शिव की प्रेम-कहानी है।
जानकी मंगल : यह 216 पदों का काव्य है, जिसमें सीता-राम के स्वयंवर का चित्रण है।
रामलला-नहछु : यह 34 प्रकरणों में 61 पदों का काव्य है, जिसमें राम के बाल-लीला का वर्णन है।
रामाज्ञा प्रश्न : यह 18 प्रकरणों में 18 पदों का काव्य है, जिसमें राम के द्वारा विभीषण को दिए गए उपदेश हैं।
वैराग्य सन्दीपनी: यह 18 प्रकरणों में 18 पदों का काव्य है, जिसमें संसार की असारता, मोह की निरर्थकता, मनुष्य के कर्तव्य, भक्ति का महत्व, गुरु की महिमा, सत्संग का फल, समता का साधन, मुक्ति का मार्ग आदि प्रस्तुत हैं।
कृष्ण गीतावली: यह 61 प्रकरणों में 61 पदों का काव्य है, जिसमें कृष्ण के जन्म, प्रकट्य, बाल-लीला, गोपी-लीला, महारास, सुदामा-मिलन, उद्धव-सन्देश, गीतोपदेश, समसाप्ति आदि हैं।
इस प्रकार, गोस्वामी तुलसीदास के अनेक कृतियों से हमें हिन्दी साहित्य, संस्कृति, धर्म, भक्ति, प्रेम, मोक्ष, समता, सहनशीलता, संतोष, सेवा, समरसता, संगति, साधना आदि के मूल्यों का प्रकाश मिलता है।
भक्ति और धर्म
तुलसीदास एक महान भक्त और धार्मिक व्यक्ति थे। उन्होंने अपने जीवन को भगवान की पूजा और भक्ति में समर्पित किया और उन्होंने अपने ग्रंथों के माध्यम से धर्मिक सिद्धांतों को लोगों के साथ साझा किया। उन्होंने धर्म, मोक्ष, और मानवता के महत्व को अपने ग्रंथों में प्रमोट किया और लोगों को एक उच्च आदर्श की ओर प्रेरित किया।
महत्वपूर्ण घटनाएँ और उपलब्धियाँ
तुलसीदास के जीवन में कई महत्वपूर्ण घटनाएँ और उपलब्धियाँ थीं। उनमें से कुछ महत्वपूर्ण घटनाएँ निम्नलिखित हैं:
रामचरितमानस की रचना : तुलसीदास की सबसे महत्वपूर्ण रचना ” रामचरितमानस ” है, जिसे उन्होंने बड़े ही साहित्यिक ग्रंथ के रूप में लिखा। इस ग्रंथ का योगदान हिंदी साहित्य के विकास में अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
हनुमानचालीसा की रचना : तुलसीदास ने ” हनुमानचालीसा ” का भी रचना की, जो हनुमान जी के प्रति उनकी भक्ति का प्रतीक है। यह छंदों में लिखा गया है और इसे भक्ति और पूजा के रूप में अच्छे तरीके से प्राप्त किया जाता है।
संस्कृत में मासिक ग्रंथ अमावास्या के निर्माण : तुलसीदास ने संस्कृत में मासिक ग्रंथ ” अमावास्या ” का निर्माण किया, जिसमें धार्मिक और साहित्यिक विषयों पर लेख शामिल थे।
समाज में धार्मिक और साहित्यिक प्रेरणा : तुलसीदास का जीवन और उनके ग्रंथों के माध्यम से उन्होंने समाज में धार्मिक और साहित्यिक प्रेरणा प्रदान की। उन्होंने भक्ति, मोक्ष, और धर्म के महत्व को लोगों के साथ साझा किया और उन्हें सच्चे जीवन का मार्ग दिखाया।
यह भी पढ़ें : Bhai Dooj की शुरआत
तुलसीदास जी का स्वभाव
इनकी भाषा शैली सरल, सहज और भावपूर्ण थी। इन्होने अवधी के साथ-साथ ब्रज, भोजपुरी और संस्कृत का भी प्रयोग किया। इनके काव्य में भक्ति, प्रेम, श्रृंगार, वैराग्य, निति आदि रास प्रकट होते हैं। इनके दोहे और चौपाइयां बहुत लोकप्रिय हैं और इनकी कथाओं का प्रभाव लोगों पर गहरा है।
तुलसीदास जी की मृत्यु
इनका जीवन काल बहुत लम्बा रहा। इन्होने 126 वर्ष तक जीवन बिताया और अनेक स्थानों पर घूमकर राम-कथा सुनाई। इनकी मृत्यु संवत 1680 में काशी में हुई। उनकी मृत्यु के बाद, उनकी भक्ति काव्य और धर्मिक ग्रंथों का विद्वानों और आम लोगों में महत्वपूर्ण स्थान है। उनके ग्रंथ आज भी भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में मान्य जाते हैं और उनकी रचनाएँ आज भी पठनीय हैं।
समापन
तुलसीदास ने अपने जीवन में भक्ति, साहित्य, और धर्म के महत्व को महसूस किया और उन्होंने इन्हीं मूल्यों को अपने ग्रंथों के माध्यम से लोगों के साथ साझा किया। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि भक्ति और साहित्य के माध्यम से हम अच्छे और सजीव जीवन का मार्ग ढूंढ सकते हैं और आत्मा के उन्नति की दिशा में काम कर सकते हैं। उनके ग्रंथ आज भी हमारे जीवन में महत्वपूर्ण हैं और हमें मानवता के महत्व को याद दिलाने में मदद करते हैं।
तुलसीदास का जीवन परिचय, तुलसीदास का जीवन परिचय, तुलसीदास का जीवन परिचय, तुलसीदास का जीवन परिचय, तुलसीदास का जीवन परिचय, तुलसीदास का जीवन परिचय, तुलसीदास का जीवन परिचय, तुलसीदास का जीवन परिचय, तुलसीदास का जीवन परिचय, तुलसीदास का जीवन परिचय, तुलसीदास का जीवन परिचय, तुलसीदास का जीवन परिचय, तुलसीदास का जीवन परिचय, तुलसीदास का जीवन परिचय, तुलसीदास का जीवन परिचय,